मुद्दा--
हाँ आजकल सभी के मन में एक ही सवाल है की कैसे और कब इस महंगाई से छूटकारा मिलेगा. कोई कहता है "जानलेवा महंगाई" तो कोई कहता है "मार रही है महंगाई" तो कोई कहता है "कमर तोड़ महंगाई" और भी न जाने कितने ही नारे बन चुके है इस महंगाई के ऊपर पर छुटकारा नहीं मिला और तो और एक गाना भी बन गया है की "महंगाई डायन खाए जात है"।
वैसे तो ये मुद्दा अब आम बन चूका है मेरा ये लेख कोई विशेष या अकेला नहीं है कई हजारो ही लेख इस पर लिखे जा चुके है और सबसे बड़ी बात यह है की जिन लोगो ने ये लेख लिखे है वो मेरे से कही ज्यादा तजुर्बेदार और प्रतिभाशाली है मैं तो बस यूँही अपने मन की भड़ास निकलने के लिए कुछ पंक्तिया लिख रहा हूँ।
और हाँ एक विशेष बात और की इस महंगाई के साथ साथ अज कल एक बात और काफी जोरो पर है वोह ये की इस सरकार से भी कब आज़ादी मिलेगी। मैं अभी हाल ही में एक ब्लॉग पढ़ रहा था की अगर आप ब्लाग, सामाजिक वेबसाइट या किसी और इन्टरनेट माध्यम से सरकार की करतूतों को लोगो तक पहुचाते हो तो वो कितने लोगो तक जाती होगी एक हज़ार, दस हज़ार और ज्यादा से ज्यादा एक लाख लोगो तक चलो मान भी लेते है की वो एक लाख लोग इस सरकार के लिए मतदान न करे परन्तु हमारे देश में फिर भी इतने लोग होंगे जिनके बलबूते कोई भी पक्ष विजय घोषित किया जा सकता है कारण बस एक है की जिन लोगो की यहाँ पर बात की गयी है ये वो वर्ग है जो इन्टरनेट से काफी कोसो दूर है हम लोग तो फिर भी कई माध्यम से इस सरकार की करतूतों को जान लेते है पर इन लोगो के पास तो मीडिया ही एक जरिया है और सरकार तो मीडिया पर दबाब डाल कर इन खबरों को गोल कर देती है फिर भला उन लोगो तक ये बात कैसे उजागर हो की जिस पक्ष के लिए उन्होंने मतदान किया था उसने किस प्रकार इनको लुटा है।
एचडीएफसी बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर आदित्य पुरी का मानना है कि महंगाई को काबू में करने के लिए ग्रोथ को थोड़ा कम करना जरूरी हो गया है। ऐसे में आरबीआई की प्रमुख दरों में अब 0.25 या 0.5 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी नहीं होगी। यदि रिजर्व बैंक अपने प्रमुख दरों में बढ़ोतरी करता है तो जरुरी नहीं कि बैंकों का कर्ज महंगाई होगा।
अब इस खबर में मुझे ये समझ नहीं आया की दरो में कम बढोतरी की बात की जरा रही है या महंगाई को कम करने की बात की जारही है। अब तो हर तरफ त्राहि त्राहि मची हुयी है ऐसा लगता है की जल्द ही वाष्प से बना ये गुब्बारा बोहत ही जल्द फूटने वाला है परन्तु ये समझ नहीं आता की नयी सरकार अगर महंगाई को कम करने के लिए जो भी कदम उठाएगी तो क्या मोजुदा सरकार वो कदम नहीं उठा सकती या उठाना नहीं चाहती। मतलब तो मेरा सीधा सा है की सरकार कोई भी हो महंगाई से कैसा निबटारा पाया जाये से सोचना चाहिए नाकि सरकार को ही बदल दिया जाये। ऐसा नहीं है की में किसी का पक्ष ले रहा हूँ मैं तो सिर्फ ये कहना चाहता हूँ सरकार को बदलने के लिए फिर चुनाव और उस पर होने वाले खर्चे....उफ़ फिर वोही रोना कभी कभी ये सब सोच कर सर भी फटने लगता है। खैर ये तो लाज़मी है की जो भी लोग मोजुदा सरकार के कारनामो से भलीभांति परिचित होगी वो तो दोबारा मतदान करने से रही
मुझे समझ नहीं आता की कोन सा बांम भारतीयों के इस दर्द से छुटकारा दिलाने में सफल सिद्ध होगा। महंगाई और भारत में प्रति व्यक्ति आय का कड़वी सच्चाई यह है कि बिहार, असम और झारखंड जैसे गरीब राज्यो΄ मे΄ लोग अपने मासिक बजट की आधी से अधिक राशि महज दो वक्त का भोजन में करने को मजबूर हैं। नेशनल सैपल सर्वे (एनएसएस) की ताजा रिपोर्ट मे΄ यह खुलासा किया गया है। (सोमवार, जुलाई 11, २०११)
कुछ समय पहले तक को माध्यम वर्ग की किसी तरह गाड़ी चल रही थी लेकिन जब से घरेलु गैस के दाम बड़े तब से तो समझो रही सही कसर भी सरकार ने पूरी कर दी।
वैसे तो कई बाते है जो मेरे समझ के परे है उनमे से एक बात है जो मुझे असमंजस में डाल देती है की लगभग 70% से ज्यादा भारतीयों का बसेरा अब भी गाँव में है और वो पूर्ण रूप से कृषि पर आधारित है फिर भी फल, सब्जीया हमारे ही हाथो से परे है और चावल तो ऐसे नखरे दिखता है की पूछो मत.
हाँ ये ज़रूर है की ये महज़ एक शब्द कहो या मीडिया में चर्चा कहो या इन्टरनेट पर सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला विषय कहो बस येही सब बन कर रह गया है क्यों की आम जनता के हाथ में इतनी शक्ति तो है नहीं की वो तख्ता पलट करदे सिर्फ कहने को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र हमारे भारत में है. अरे कहे का लोकतंत्र, जन लोकपाल की हालत तो सभी जानते है और कोन सा हमारे देश में प्रधानमंत्री चुनने की शक्ति हमारे पास होती है वो तो जो पार्टी जोड़ तोड़ कर बन जाती है वो फिर खुद ही चुनाव करती है. वैसे तो ये भी एक अपने में बोहत बड़ा मुद्दा है पर इस पर फिर कभी रोशनी डालेंगे
जानता हूँ जानता हूँ मेरे लिखने से कुछ होने वाला तो नहीं है पर हाँ इतना ज़रूर है की में अपनी मन की भावना तो व्यक्त कर ही सकता हूँ इस प्रकार